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प्राचीन आर्किया का अध्ययन: भारतीय वैज्ञानिकों की खोज
नई दिल्ली: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, बोस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने प्राचीन जीवों के एक समूह आर्किया का अध्ययन किया है। इस अध्ययन का उद्देश्य कठोर परिस्थितियों में सूक्ष्मजीवों की जीवित रहने की रणनीतियों को समझना है, खासकर टॉक्सिन-एंटीटॉक्सिन (टीए) सिस्टम की मदद से।
आर्किया और उनका महत्व
आर्किया, जिसका ग्रीक में अर्थ है “प्राचीन चीजें”, पृथ्वी पर जीवन के सबसे पुराने रूपों में से एक हैं। ये जीवन के तीसरे डोमेन से संबंधित हैं और पृथ्वी के सबसे कठोर वातावरण में जीवित रहते हैं। इस कारण से, आर्किया का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है ताकि यह समझा जा सके कि जीवन कठिन परिस्थितियों में कैसे जीवित रह सकता है।
अनुसंधान और निष्कर्ष
बोस इंस्टीट्यूट के जैविक विज्ञान विभाग में डॉ. अभ्रज्योति घोष के नेतृत्व में एक टीम ने इस बात का पता लगाया कि कैसे कुछ आर्किया टॉक्सिन-एंटीटॉक्सिन (टीए) प्रणालियों की मदद से उच्च तापमान का सामना करते हैं। एमबीएओ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, टीम ने सल्फ़ोलोबस एसिडोकैल्डेरियस नामक आर्किया में VapBC4 TA प्रणाली का अध्ययन किया।
VapBC4 TA प्रणाली का विश्लेषण
डॉ. घोष और उनकी टीम ने पाया कि VapBC4 TA प्रणाली उच्च तापमान में जीवित रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रणाली का विष VapC4 कई कार्य करता है, जैसे प्रोटीन उत्पादन को रोकना, जीव को लचीली कोशिकाएं बनाने में मदद करना और बायोफिल्म निर्माण को प्रभावित करना। जब कोशिका गर्मी के तनाव का सामना करती है, तो एक तनाव-सक्रिय प्रोटीज़ VapB4 प्रोटीन को तोड़ सकता है, जिससे VapC4 विष सक्रिय हो जाता है और प्रोटीन उत्पादन रोक सकता है। यह प्रक्रिया जीवित रहने की रणनीति का हिस्सा है, जिससे कोशिकाएं “दृढ़ कोशिकाएँ” बन जाती हैं, ऊर्जा बचाती हैं और क्षतिग्रस्त प्रोटीन बनाने से बचती हैं।
निष्कर्ष
यह निष्क्रियता कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने की एक रणनीति है, जिससे आर्किया पर्यावरण में सुधार होने तक जीवित रह सकते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों का यह अध्ययन महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि कैसे प्राचीन जीव कठोर परिस्थितियों में अनुकूलन करते हैं और जीवित रहते हैं।
Source Link: zeenews.india.com
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