आज के समय में हर कोई अपने आप में स्वंतत्र है वह अपने आप में छोटे बड़े फैसले लेने के लिए आजाद है लेकिन क्या इस प्रकार की आजादी सन 1947 से पहले मुमकिन थी | जी नहीं ,क्योंकि उससे पहले हम परतन्त्र्त थे हमे अपने फैसले लेने का हक नहीं था | लेकिन क्या आज की यह आजादी हमे ऐसे ही मिली ,जी नहीं ना जाने कितने वीर क्रांतिकारियों और राजनैतिक नेताओं ने अपने आप को इस बलिदान के लिए समर्पित किया | तो आइये जानते हैं उन्ही में से एक महान राजनैतिक नरम दल के नेता लाल बहादुर शास्त्री के बारे में –
जन्म-
सादगी से पूर्ण और स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े पुरुस्कार भारत रत्न से सम्मानित लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुगलसराय (उत्तरप्रदेश) ब्रिटिश भारत में हुआ था.इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था, जो एक प्राइमरी विधालय में शिक्षक थे माता का नाम राम दुलारी था | जब शास्त्री जी की उम्र मात्र डेढ़ बर्ष ही थी तब इनके पिता का देहांत हो गया था | इनका बचपन अपने नाना के यहां गुजरा क्योकि इनकी माँ, शास्त्री जी के पिता के निधन के बाद अपने मायके आकर रहने लगी थीं |
शिक्षा – दीक्षा
इनकी प्राथमिक शिक्षा अपने नाना के यहां मिर्ज़ापुर में ही हुई और आगे की पढ़ाई हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी-विद्यापीठ में हुई | जब कशी विधापीठ में पढ़ाई कर रहे थे उसी समय भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए और 11 बर्ष की उम्र से ही राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने वा देश के लिए स्वंत्रता का मन बना लिया था | काशी-विद्यापीठ में इन्होने ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की. तभी से इन्हें ‘शास्त्री’ नाम के साथ जोड़ दिया | और सन1928 में इनका विवाह संस्कार ललिता शास्त्री के साथ हुआ |
राजनीतिक कदम –
पढ़ाई करने के दौरान ही,उस समय गांधी जी असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों को प्रेरित कर रहे थे, उस समय शास्त्री जी तकरीबन सोलह वर्ष के थे। महात्मा गांधी के इस आह्वान को देखकर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर देश को कुछ कर गुजरने का संकल्प ले लिया | और गाँधी जी के आह्वान से प्रेरित होकर इस आंदोलन से जुड़ गए |
स्वंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष –
सन 1920 में स्वतन्त्रता की लड़ाई में शास्त्री जी पूर्ण रूप से कूद पड़े और तभी अपना एक नारा ‘मरो नहीं मारो’ का दे डाला ,उनके इस नारे के साथ पुरे देश में स्वतन्त्रता प्राप्ति की ज्वाला भड़क गयी |और सन 1921 में गाँधी जी के ‘अहसयोग-आन्दोलन’ में बढ़ चढ़कर भाग लिया और और समाज में अपनी एक नई पहचान बनाई |
1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा की शुरुआत की । इस प्रतीकात्मक सन्देश या आंदोलन ने पूरे देश में एक तरह प्रकार से स्वंत्रता के लिए क्रांति ला दी जिसमें की शास्त्री जी विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में भी शामिल हुए । उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में आजादी की लड़ाई को और भी तीव्र कर दिया गया.उधर गर्म दल के नेता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ का गठन कर उसे “दिल्ली-चलो” का नारा दिया | और इसी समय बढ़ते आंदोलन को देख ब्रिटिश सरकार ने शास्त्री जो को पकड़ने का मन बना लिया इसी वजह से शास्त्री जी ग्यारह दिन भूमिगत रहना पड़ा फिर 19 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया |
स्वतंत्र भारत के नेता-
स्वतंत्र भारत में यह उत्तर प्रदेश की संसद के सचिव नियुक्त किये गये एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल में पुलिस एवम परिवहन का कार्यभार दिया गया |1951 में शास्त्री जी को ‘अखिल-भारतीय-राष्ट्रिय-काँग्रेस’ का महा-सचिव बनाया गया. लाल बहादुर शास्त्री हमेशा पार्टी के प्रति समर्पित रहते थे. उन्होंने 1952, 1957, 1962 के चुनाव में पार्टी के लिए बहुत काम कर प्रचार-प्रसार किया, एवम काँग्रेस को भारी बहुमत से विजयी बनाया .
शास्त्री जी की काबिलियत को देखते हुए, इन्हें जवाहरलाल नेहरु की आकस्मिक मौत के बाद प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया,उसी समय अचानक ही 1965 में सांय 7.30 बजे पकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला कर दिया. इस पर शास्त्री जी तीनो सेना प्रमुखों से डटकर मुकाबला करने को कहा इस्थिति को संभालते हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान विकट परिस्थितियों में शास्त्री जी ने सराहनीय नेतृत्व किया और “जय-जवान जय-किसान” का नारा दिया, जिससे देश में एकता आई और भारत ने पाक को हरा दिया, जिसकी कल्पना पकिस्तान ने नहीं की थी, क्योंकि तीन वर्ष पहले चीन ने भारत को युद्ध में हराया था |
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु –
रूस एवम अमेरिका के दबाव पर शास्त्री जी शान्ति-समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रूस की राजधानी ताशकंद में मिले. जहां उन पर दबाब बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए.और समझोते की रात को ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई. इस तरह 18 महीने ही लाल बहादुर शास्त्री ने भारत की कमान सम्भाली. इनकी मृत्यु के बाद पुनः गुलजारी लाल नन्दा को कार्यकालीन प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया |